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इतिहास के अति महत्वपूर्ण प्रश्न

इतिहास के अति महत्वपूर्ण प्रश्न 

1.      प्लासी की लड़ाई 1757 में लड़ा गया था

2.      बौद्ध धर्म का त्रिशूल के आकार का प्रतीक निर्वाण का प्रतिनिधित्व नहीं करता है।

3.      पोरस का क्षेत्र झेलम और चिनाब की नदियों के बीच है।

4.      गौतम बुद्ध के प्रवचन की भाषा पाली थी।

5.      सुभाष चंद्र बोस भारतीय सैनिकों का आयोजन करता है।

6.      श्रीरंगपट्टण की संधि - टीपू सुल्तान और कॉर्नवॉलिस

7.      सिविल सेवा के लिए प्रतिस्पर्धी परीक्षा की व्यवस्था को वर्ष 1853 में सिद्धांत रूप में स्वीकार किया गया था।

8.      साहित्य और कला का एक महान संरक्षक, राजा भोज परमरा के अंतर्गत आता है।

9.      महायानाकाचार्य के माध्यम से, राजा ने विजयनगर साम्राज्य के गांवों पर अपना नियंत्रण का प्रयोग किया।

10.  विजयनगर शासक किरशनादेव राय का काम अमुक्तममलदा, तेलुगु में था

11.  Dakhili। - सम्राट द्वारा उठाए गए सैनिकों ने राज्य को सीधे भुगतान नहीं किया और मानवस्वामी के आरोप में रखा।

12.  पेशावर और पंजाब को जीतने और कब्जा करने के लिए, गजनी के महमूद ने हिंदुओं को हराया।

13.  1858 ईस्वी में पहली बार भारत के गवर्नर-जनरल के कार्यालय में 'वायसरॉय' का शीर्षक जोड़ा गया।

14.  ब्रिटिश सरकार ने महात्मा गांधी को कैसर-ए-हिंद दिया है।

15.  'यवानप्रिया' शब्द का अर्थ है काली मिर्च का अर्थ।

16.  बाबर और जहांगीर दो महान मुगलों ने अपनी यादें लिखीं।

17.  प्राचीन भारतीय वास्तुकला में खारोष्टी का उपयोग ग्रीस के साथ भारत के संपर्क का नतीजा है।

18.  त्रिपिटाक बौद्धों की पवित्र पुस्तकें हैं

19.  अकबर के तहत, मीर बक्षी सैन्य मामलों की देखभाल करेगा।

20.  मैंगलोर की संधि अंग्रेजी ईस्ट इंडिया कंपनी और टीपू सुल्तान के बीच एक समझौता है।

21.  पट्टिनप्पलाई में करािकाला की जीत अच्छी तरह से चित्रित की गई है।

22.  Todar Mal वित्त के साथ जुड़े थे

23.  उज्जैन के एक राजा विक्रमादित्य ने, 58 ईसा पूर्व में सैक पर अपनी जीत की स्मृति में विक्रम सम्भव शुरू किया था।

24.  कताई व्हील का उपयोग 14 वीं सदी एडी से अस्तित्व में आएगा।

25.  एनी बेसेंट साप्ताहिक कॉमनवेल का संस्थापक है

26.  भारतीय इतिहास सामान्य ज्ञान प्रश्न और प्रतियोगी परीक्षाओं के लिए उत्तर

27.  वेरु थम्पी ने त्रावणकोर राज्य में अंग्रेजों के खिलाफ विद्रोह किया।

28.  गुप्त अवधि के बाद, राजा के साथ भूमि की अंतिम स्वामित्व

29.  मज़हार अबुल फजल के अकबरनामा में पाया जाता है।

30.  टीपू सुल्तान मैसूर के शासक थे।

31.  वेदों में स्वामी दयानंद की सच्चाई होती है।

32.  रामचरितमानस के लेखक तुलसीदास, अकबर के समकालीन थे।

33.  उस्ताद मंसूर जहांगीर के प्रसिद्ध चित्रकार थे।

34.  शब्द यवनिका का मतलब पर्दा था।

35.  दादाभाई नौरोजी ने ब्रिटिश साम्राज्यवाद के दौरान भारत के आर्थिक नाले के सिद्धांत का प्रस्ताव दिया है।



भारतीय इतिहास


1.खलीफा ने इस्लामिक इतिहास में सर्वप्रथम महमूद गजनवी को सुल्तान की उपाधि दी।

2. मोहम्मद गोरी ने 1176 ई. में सुल्तान पर आक्रमण किया।

3. 25 मार्च, 1206 ई. के धमयक में शिया विद्रोहियों और खोखरों ने मोहम्मद गोरी की हत्या कर दी।

4. 1202-03 ई. में कुतुबद्दीन ऐबक ने कालिंजर पर आक्रमण किया उस समय वहाँ का शासक पर्मार्दिदेव था।

5. कुतुबद्दीन ऐबक की नवम्बर 1210 ई. में लाहौर में घोड़े से गिर जाने से मृत्यु हो गई।

6. नवम्बर 1210 से जून 1211 ई. तक ऐबक के पुत्र आरामशाह ने शासन किया।

7. बलबन 1249 ई. में नायब-ए-मामलिकात के पद पर बैठा।

8. बलबन ने सिक्कों पर जिल्ले इलाही खुदवाया और मद्यपान बन्द करवाया।

9. इल्तुतमिश दिल्ली का पहला सुल्तान था जिसे 1229 ई. में बगदाद के खलीफा ने मान्यता दी।

10. सम्पूर्ण सल्तनत युग में सिद्धपाल पहला और अन्तिम हिन्दू था जिसे दिल्ली दरबार में उच्च पद मिला।

11. जलालउद्दीन खिजली 1290 ई. में 70 वर्ष की आयु में सुल्तान बना। उसकी राजधानी किलोखरी थी।

12. खिलजी वंश के इतिहास का महत्वपूर्ण स्रोत जियाउद्दीन बर्नी का तारीख-ए-फिरोजशाही है।

13. 1316 ई. में अलाउद्दीन खिलजी की जलोदर रोग से मृत्यु हो गई।

14. अलाउद्दीन प्रथम सल्तनत शासक था जिसने उलेमाओं की उपेक्षा की थी।

15. अलाउद्दीन खिलजी के समय में दिल्ली को अनेक व्यापारिक केन्द्रों से सड़क मार्ग द्वारा जोड़ा गया।

16. गियासुद्दीन तुगलक को 1315 ई. में अलाउद्दीन खिलजी ने दीपलपुर का सूबेदार नियुक्त किया। उसने 29 बार आक्रमणकारियों को परास्त किया। इसीलिए वह मलिक-उल-गाजी के नाम से विख्यात हुआ।

17. मोहम्म बिन तुगलक ने अपने सिक्कों पर 'अल सुल्तान जिल्ली अल्लाह', 'ईश्वर सुल्तान का समर्थक है' आदि अंकित करवाया।

18. अफ्रीकी यात्री इब्नबतूता मोहम्मद तुगलक के शासन का में भारत आया।

19. नसीरुद्दीन मोहम्मद शाह के काल में कबीरुद्दीन ओलिया के मकबरे का निर्माण हुआ जो लाल गुम्बद के नाम से विख्यात है।

20. सिंचाई कर उपज का दसवाँ भाग था। फिरोज तुगलक ने ब्राह्मणों पर ​जजिया कर लगाया।

21. सिकन्दर लोदी ने 1504 ई. में आगरा बसाया।

22. हेनरी इलियट और एल्फिंस्टन ने फिरोज तुगलक को सल्तनत युग का अकबर कहा।

23. मलिक सरवर नामक एक हिजड़ा जिसे 'सुल्तान उस शर्क' की उपाधि मिली थी जौनपुर में स्वतन्त्र शासक बन बैठा और शर्की राजवंश की नींव डाली।

24. दिल्ली सल्तनत में सुल्तान की सहायता के लिए एक मन्त्रिपरिषद् होती थी जिसे मजलिस-ए-खलवत कहा जाता था।

25. दीवान-ए-अमीर कोही की स्थापना मोहम्मद बिन तुगलक ने की जिसने काफी विशिष्टता प्राप्त की।

26. फिरोजशाह तुगलक ने ‘हाब-ए-शर्ब’ नामक सिंचाई कर लगाया। इसकी दर उपज का 1/20वाँ भाग थी।

27. राजवाही और उलूग खाजी फिरोजशाह तुगलक द्वारा बनवायी गईं प्रमुख नहरें थीं।

28. नौसेनिक बेड़े को बहर कहा जाता था। इसका अध्यक्ष अमीर-ए-बहर होता था।

29. मोहम्मद तुगलक ने अनेक करों को माफ किया जिससे व्यापार में वृद्धि हुई।

30. कश्मीर का सबसे उल्लेखनीय शासक जैन-उल-अबीदीन हुआ है जिसे ‘कश्मीर का अकबर’ कहा जाता है।
31. शेख निजामुद्दीन ओलिया का जन्म 1236 ई. में बदायूँ में हुआ था।

32. नरसिंह सालुव के पश्चात् उसका नाबालिग पुत्र इम्मादि नरसिंह शासक बना और नरेश नायक उसका संरक्षक।

33. उसने 1512 ई. में रायचुर दोदआब पर अधिकार कर लिया और 1520 ई. में बीजापुर को रोंद डाला तथा गुलबर्गा का किला जीत लिया।

34. युद्ध में वीरत दिखाने वाले पुरुषों को सम्मान देने के लिए ‘गंडपेद्र’ नामक पैर में धारण करने वाला आभूषण दिया जाता था।

35. 1336 ई. में हरिहर प्रथम ने हम्पी राज्य की नींव रखी और उसी वर्ष विजयनगर को राजधानी बनाया।
36. देवराय प्रथम (1406-1422 ई.) के पश्चात् रामचन्द्र सिंहासन पर बैठा, परन्तु वह कुछ माह तक ही शासन कर सका. उसके पश्चात् उसके भाई ने 1430 ई. तक शासन किया।

37. विजयनगर प्रशासन में राजा (राय) के बाद युवराज का पद होता था। युवराज की नियुक्ति के बाद उसका राज्याभिषेक किया जाता था जिसे युवराज पट्टा भिषेकम कहा जाता था।

38. गुलबर्गा के बाद बीदर बहमनी साम्राज्य की राजधानी बनी।

39. सुल्तान शमसुद्दीन मुहम्मद तृतीय ने संगमेश्वर, गोआ और बेलगाँव को क्रमशः 1471, 1472 और 1473 ई. में जीता।

40. बाबर ने 1504 ई. में काबुल जीता और 1507 ई. में कान्धार जीतकर बादशाह की उपाधि धारण की। 1510 ई. में शैबानी खाँ मर्व के युद्ध में मारा गया।

41. युद्ध की तुलगमा पद्धति को बाबर ने उजबेगों से सीखा और बंदूकों का प्रयोग ईरानियों से।

42. दिसम्बर 1530 ई. में बाबर की मृत्यु हो गई और उसे आगरा में आरामबाग में दफना दिया गया. बाद में उसे काबुल ले जाकर दफनाया गया।

43. हुमायूँ की पत्नी हमीदा बानो बेगम हिन्दाल के आध्यात्मिक गुरु शिया मीर बाबा उर्फ मीर अली अकबर जामी की पुत्री थी।

44. कालिंजर में हुमायूँ ने हिन्दू मन्दिरों को तुड़वाया।

45. लेनपोल ने लिखा है हुमायूँ लुढ़क-पुढ़क कर जिया और लुढ़क कर मर गया।
46. शेरशाह के काल में भूमि बीघों में रस्सी द्वारा नापी जाती थी।

47. अमरकोट के राणा वीरसाल के यहाँ 15 अक्टूबर, 1542 ई. को अकबर का जन्म हुआ था।
48. मीर अब्दुल लतीफ को बैरम खाँ ने अकबर का शिक्षक नियुक्त किया।

49. अकबर ने 1562 ई. में प्रथम बार अजमेर में शेख मोइनुद्दीन चिश्ती की यात्रा की।
50. महाराणा प्रताप की 1597 ई. में मृत्यु हो गई।

51. 1572 ई. में अकबर ने गुजरात पर विजय प्राप्त की और खान-ए-आजम (अजीज कोका) को गुजरात का सूबेदार बनाया।

52. कुतलूखाँ लोहानी ने स्वयं को उड़ीसा का स्वतन्त्र शासक घोषित किया. बिहार के सूबेदार मानसिंह ने 1590 ई. में उड़ीसा पर आक्रमण किया और लोहानी के पुत्र निसार खाँ को परास्त कर उड़ीसा पर अधिकार कर लिया।

53. चाँद बीबी बीजापुर की रानी थी जिसने मुगल सेना का मुकाबला किया।

54. जब जहाँगीर बादशाह बना उस समय अमरसिंह मेवाड़ का शासक था। जहाँगीर ने उसे हराने के लिए क्रमशः शाहजादा परवेज, आसफखाँ, महाबत खाँ, अब्दुल्लाह खाँ और शाहजादा खुर्रम को भेजा।

55. 1633 ई. में बरहानपुर में मुमताज महल की मृत्यु हो गई।

56. 1636 ई. में बीजापुर में मुगलों का आधिपत्य स्वीकार कर लिया।

57. अकबर, जहाँगीर एवं औरंगजेब के काल के सभी मन्त्री शिया थे।

58. अकबर ने 1562 ई. में ऐतमाद खाँ की मदद से बजट प्रथा शुरू की।

59. अकबर ने विवाह के लिए न्यूनतम आयु निश्चित की लड़कियों के लिए 14 वर्ष, लड़कों के लिए 16 वर्ष।

60. 1585 ई. में अकबर ने एक स्थायी न्यायिक समिति की नियुक्ति की। इसके सदस्य थे–बीरबल, हकीम हम्माम शमशेर खाँ (कोतवाल) और कासिम खाँ।

61. अमीर खुसरो ने खजाइनुल-फुतूह तारीख-ए-अलाई की रचना की।

62. ध्रुपद राग को संगीत में स्थान दिलाने का श्रेय ग्वालियर के राजा मानसिंह को जाता है। मानसिंह ने ‘कौतूहल’ नामक संगीत ग्रन्थ लिखा।

63. बाबर ने तुर्की में अपनी आत्मकथा तुजुक-ए-बाबरी लिखी. इस पुस्तक का फारसी में दो बार अनुवाद हुआ. एक बार अब्दुर्रहीम खान-ए-खाना ने।

64. फारसी मुगलों की राजभाषा थी. इसे अकबर ने राजभाषा बनाया।

65. सुखसेन, लालसेन, सरसेन और जगन्नाथ शाहजहाँ के दरबार के प्रसिद्ध गायक थे।

66. मोहम्मद शाह पहला मुगल बादशाह था जिसने उर्दू को प्रोत्साहन दिया।

67. तैमूर का जन्म 1336 ई. में ट्रांस ओक्सियाना में कैच नामक स्थान पर हुआ।

68. अकबर के दरबार के 17 चित्रकारों में से 13 हिन्दू थे। वे थे-दसवन्त, बसावन, केशू, लाल, मुकुन्द, मधु, जगन, महेश, तारा खेमकरन, सांवला, हरिवंश तथा राय।

69. ‘शाहबुर्ज’ शाहजहाँ का गोपनीय कक्ष था जो आगरा के किले में स्थित था।

70. जामा मस्जिद का निर्माण कार्य शाहजहाँ की बेटी जहाँनारा ने पूर्ण कराया।

71. ताजमहल बाईस वर्षों में नौ करोड़ रुपए की लागत में से 1653 ई. में तैयार हुआ।

72. दिल्ली के लाल किले का निर्माण हमीद और अहमद नामक शिल्पकारों की देखरेख में एक करोड़ रुपए में 1648 ई. में पूरा हुआ।

73. शाहजहाँ के काल में एक गुम्बद में अनेक गुम्बदों का निर्माण हुआ। दिल्ली के लाल किले का दीवान-ए-खास इसका उदाहरण है।

74. शाहजहाँ ने इलाही संवत् के स्थान पर हिजरी संवत् प्रारम्भ किया।

75. हुमायूँ के प्रमुख चित्रकार थे-मीर सैयद अली, शिराजी, ख्वाजा अब्दुल समद, सैयद तबरीजी।

76. औरंगजेब ने बीजापुर और गोलकुण्डा में बने चित्रों को नष्ट करवा दिया और अकबर के मकबरे के चित्रों के ऊपर सफेदी पुतवा दी।

77. आगरा स्थित, रामबाग को नूर-ए-अफगान या आराम बाग कहा जाता था।

78. शाहजहाँ के शासनकाल को मुगल शासन का स्वर्ण युग कहा जाता है।

79. नसीरुद्दीन महमूद (इल्तुतमिश के पुत्र) का मकबरा सुल्तानगढ़ी कहलाता है।

80. अकबर ने 1563 ई. में तीर्थयात्रा कर और अगले वर्ष जजिया कर समाप्त कर दिया।
81. अबुल फजल ने कानूनगो को ‘कृषकों का आश्रम’ कहा है।

82. अकबर के समय में स्वर्ण का सबसे बड़ा सिक्का ‘इलाही’ कहलाता था।

83. सती प्रथा, बाल विवाह तथा वैश्यावृत्ति का अन्त कराने का प्रयास अकबर ने किया।

84. मुगलकाल में वित्त मन्त्री को दीवान-ए-आला या दीवान-ए-कुल कहा जाता था, लेकिन औरंगजेब के काल में इसे वजीर-ए-मुअज्जम कहा जाता था।

85. फार्रुख सियर ने अपने शासन के प्रथम वर्ष में जजिया कर समाप्त कर दिया. 1717 ई. में इसे पुनः लागू कर दिया गया और 1719 ई. में फिर हटा लिया गया।

86. अकबर ने 1585 ई. में गज-ए-इलाही शुरू किया. यह 41 अंगुल के बराबर था।

87. ‘गौगार’ वास्तुकार को कहा जाता था। ‘फिकह’ इस्लामी विधिशास्त्र को कहा जाता था।

88. शाहजहाँ ने शासन के छठे वर्ष में शराब की बिक्री पर रोक लगा दी।

89. मुगलकाल में हाथी दाँत का काम अपने चर्मोत्कर्ष पर था। आगरा फतेहपुर सीकरी और जयपुर इसके प्रमुख केन्द्र थे।

90. औरंगजेब का राज्याभिषेक दोबार हुआ- प्रथम बार 1658 ई. में और दूसरी बार 1659 ई. में।

91. औरंगजेब ने 80 करों को समाप्त कर दिया। इनमें शहदारी एवं पानदारी प्रमुख थे। इन्हें आबवाब कहा जाता था।

92. औरंगजेब ने 1679 ई. में गैर मुसलमानों पर जजिया कर लगा दिया।

93. 1707 ई. में औरंगजेब की मृत्यु हो गई. दौलताबाद के निकट शेख जैन-उल-हक की मजार के निकट उसे दफना दिया गया।

94. औरंगजेब ने राजकुमारों से प्राप्त उपहार को ‘निमाज’ और अमीरों से प्राप्त उपहार को ‘निसार’ कहा।

95. औरंगजेब ने अपने शासन के ग्यारहवें वर्ष में झरोखा दर्शन की प्रथा समाप्त कर दी।

96. औरंगजेब ने अपनी एक पुत्री का विवाह दारा के पुत्र सिफिर शिकोह से और पाँचवी पुत्री का मुराद के लड़के इजीद बख्श से किया।

97. गुरु हरगोविन्द सिंह ने अकाल तख्त की स्थापना की।

98. शिवाजी ने मुगलों से पहला संघर्ष 1656 ई. में प्रारम्भ किया जब शिवाजी ने अहमदनगर और जुन्नार पर आक्रण किया।

99. शिवाजी के दो राज्याभिषेक हुए। पहले के पंडित गंगभट्ट थे और दूसरे राज्याभिषेक में निश्चलपुरी गोस्वामी नामक तांत्रिका था।

100. मालवा में 1435 ई. में महमूद खाँ ने खिलजी वंश की स्थापना की।

101.      राज्य सभा के लिए नामित की जाने वाली प्रथम महिला फिल्म स्टार कौन हैं? नर्गिस दत्त

102.      स्वतन्त्र भारत के प्रथम गवर्नर जनरल कौन थे? माउंटबेटन

103.      शोभना नारायण क्या हैं? नृत्यांगना

104.      मानसरोवर किस देश में स्थित है? चीन

105.      राज्य सभा के सदस्यों का चुनाव किनके द्वारा किया जाता है? राज्यों के विधान सभा द्वारा

106.      हमारे राष्ट्रीय चिह्न में लिए गए सारनाथ स्थित अशोक स्तम्भ से क्या निकाल दिया गया है? घंटीनुमा कमल

107.      ”मालगुड़ी डेज़” के लेखक कौन हैं? आर.के. नारायण

108.      डंडा फौज का गठन किसने किया था।चमनदीव (पंजाब)

109.      निरंकारी आंदोलन की शुरूआत किसने की थी।दयालदास

110.      सबसे कम उम्र में फांसी की सजा पाने वाला क्रांतीकारी कौन था।खुदीराम बोस

111.      जलियावाला बाग हत्याकांड के विरोध में कैसर-ए-हिंद की उपाधी लेने से किसने
मना कर दिया।महात्मा गांधी

112.      जलियांवाला बाग हत्याकांड में जनरल डायर का सहयोग करने वाले भारतीय का नाम बताओ।हंसराज

113.      मेवाड़ में भील आंदोलन का नेतृत्व किसने किया।मोतीलाल तेजावत

114.      साइमन कमीशन को और किस नाम से जाना जाता है।वाइट मैन कमीशन

115.      प्रथम गोलमेज सम्मेलन कब हुआ।17 नवम्बर 1930 ई.

117.      संविधान के किस अनुच्छेद के अंतर्गत राष्ट्रपति को हटाया जा सकता है।61

118.      संघ लोक सेवा आयोग के अध्यक्ष एवंसदस्यों की नियुक्ति कितने वर्षो केलिएकी जाती है।छह वर्ष के लिए

119.      फुटबाल मैच को आरम्भ करने के लिए प्रत्येक टीम में कम से कम कितने खिलाड़ी उपस्थित होने चाहिए? – 7 खिलाड़ी

120.      भगत सिंह को फांसी की सजा सुनाने वाला न्यायाधीश कौन था।जी.सी. हिल्टन

121.      . महात्मा गांधी के राजनीतिक गुरु कौन थे।गोपाल कृष्ण गोखले

122.      किस एक्ट को बिना अपील, बिना वकील तथा बिला दलील का कानून कहा गया।रौलेट एक्ट

123.      भारत की सबसे बड़ी झील कौनसी है।चिल्का झील (उड़ीसा)

124.      नील नदी का उद्गम स्थल है।विक्टोरिया झील

125.      पृथ्वी पर कुल भू भाग कितना प्रतिशत है।29 प्रतिशत

126.      अंतरराष्ट्रीय तिथि रेखा कहते हैं।180 देशांतर

127.      गदर पार्टी की स्थापना किसने की थी।लाला हरदयाल, काशीराम

128.      कांग्रेस के प्रथम मुस्लिम अध्यक्ष कौन थे।बदरुद्दीन तैयबजी

129.      कांग्रेस का विभाजन कब व किन दलों में विभक्त हुई।1907 नरम दल व गरम दल (सूरत अधिवेशन)

130.      मुगल दरबार में आने वाला प्रथम अंग्रेज कौन था।कैप्टन हॉकिन्स

131.      गुरुमुखी लिपी का आरंभ किसने किया।गुरु अंगद ने

132.      खालसा पंथ की स्थापना किसने की।गुरु गोविन्द सिंह ने

133.      फोर्ट विलियम कॉलेज की स्थापना किसने की।लार्ड वेलेजली ने

134.      भारत में पहली बार सार्वजनिक निर्माण विभाग की स्थापना किसने की।लार्ड डलहौजी ने

135.      अजमेर में मेयो कॉलेज की स्थापना किसने की।लॉर्ड मेयो

136.      मराठा साम्राज्य के संस्थापक कौन थे।शिवाजी

137.      शिवाजी द्वारा लगाए गए दो कर कौन से थे।चौथ, सरदेशमुखी

138.      लम्पट मूर्ख किसे कहा जाता था।जहांदार शाह को

139.      रंगीला बादशाह किसे कहा जाता था।मुहम्मदशाह को

140.      ईरान का नेपोलियन किसे कहा गया।नादिरशाह को

141.      फॉरवर्ड ब्लॉक संस्था के संस्थापक कौन थे।सुभाष चंद्र बोस

143.      भारत के उद्धारक की संज्ञा किसे दी गई।लॉर्ड रिपन

144.      शिमला समझौता कब हुआ।1945 ई.

145.      स्वतंत्र भारत के प्रथम गवर्नर जनरल कौन था।लॉर्ड माउंटबेटन

146.      तात्या टोपे का वास्तविक नाम क्या था।रामचन्द्र पांडुरंग

147.      इंग्लैंड में भारतीय सुधार समिति की स्थापना किसने की।दादा भाई नौरोजी



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1. ईस्ट इण्डिया कम्पनी के भारत आने के समय भारत में किस बादशाह का शासन था?- जहांगीर



2. ईस्ट इण्डिया कम्पनी को भारत में व्यापार करने की अनुमति किस सन् में मिली?- 1615



3. ईस्ट इण्डिया कम्पनी का भारत में पहला व्यापार केन्द्र किस स्थान पर बना?- सूरत



4. प्लासी का युद्ध किनके मध्य हुआ था?- ईस्ट इण्डिया कम्पनी और बंगाल के नवाब



5. ब्रिटिश भारत की राजधानी कलकत्ता से दिल्ली किस सन में स्थानन्तरित की गई थी?- 1911



6.भारत के प्रथम गवर्नर जनरल का नाम क्या है?- विलियम बेंटिक



7. ईस्ट इण्डिया कम्पनी ने टीपू सुल्तान पर किस सन् में विजय प्राप्त की?- 1792



8. झाँसी की रानी लक्ष्मीबाई का अग्रेजों के साथ युद्ध किस सन् में हुआ था?- 1858



9. कांग्रेस में गरम दल के संस्थापक कौन थे?- बाल गंगाधर तिलक



10. अंग्रेजों की गुलामी से मुक्ति पाने के लिए “आजाद हिन्द फौज” की स्थापना किन्होंने किया था?-- चन्द्रशेखर आजाद



11. भारत का प्रथम मुगल शासक कौन था?- बाबर



12भारत में मुगल साम्राज्य कि सन् में स्थापित हुआ?- 1526(पानीपत के युद्ध में बाबर ने इब्राहिम लोदी पर विजय प्राप्त की और मुगल साम्राज्य स्थापित हुआ।)



13. हुमायु ने शेरशाह सूरी पर किस सन् में विजय प्राप्त की?- 1540



14. पानीपत का द्वितीय युद्ध किनके बीच हुआ?- अकबर और हेमू



15. अकबर और महाराणा प्रताप के मध्य हुए युद्ध को किस नाम से जाना जाता है?- हल्दी घाटी का युद्ध



16. किस बादशाह ने न्याय के लिए जंजीर लगवाया?



- जहांगीर



17. शाहजहां की बेगम मुमताजमहल, जिसके लिए शाहजहां ने ताजमहल बनवाया, की मृत्यु कहाँ पर हुई थी?- बुरहानपुर



18. औरंगजेब का मकबरा कहाँ पर है?- औरंगाबाद



19. बाबर की पुत्री का क्या नाम था?- गुलबदन बेगम



20. “फतेहपुर सीकरी” शहर किस बादशाह ने बनवाया?- अकबर



Q.1 छठी शताब्दी ईसा पूर्व में भारत में कितने महान जनपद विद्यमान थे?



(A) 16 महाजनपद



Q.2 किस बोद्ध धर्म के अनुसार भारत में 16 महाजन पद विद्यमान थे?



(A) अन्गुत्तार्निकाय



Q.3 काशी और मत्स्य महाजनपदों की राजधानियां लिखिए?



(A) वाराणसी और विराटनगर



Q.4 राजस्थान के प्रमुख महाजन पदों के नाम लिखिए?



(A) जांगल, मत्स्य, शूरसेन शिवि



Q.5 जांगल और शूरसेन महाजनपदों की राजधानियां बताइये?



(A) अहिछ्त्रपुर और मथुरा



Q.6 महाजनपद काल में गणराज्यों किस सबसे बड़ी संस्था कौनसी थी?



(A) संथागार



Q.7 किस नन्द राजा को पराजित करके चन्द्रगुप्त मौर्य मगध के राजसिंहासन पर कब बैठा?



(A) घन नन्द को



Q.8 चन्द्रगुप्त मौर्य ने किस यूनानी शासक को पराजित किया?



(A) सेल्यूकस को



Q.9 बिन्दुसार के समय में कौन से दो वेदेशी राजदूत आये थे?


(A) यूनानी राजदूत डायमेक्स और मिश्र के राजदूत डिमानीसियस

Q.10 अभिलेखों में अशोक किन उपाधियो से विभूषित हैं?


(A) देवनाम प्रिय देवनाम प्रिय दस्सी


Q.11 अशोक ने कलिंग पर कब विजय प्राप्त की थी?


(A) 261 ईसा पूर्व


Q.11 किन अभिलेखों में अशोक का नाम अशोक मिलता हैं?


(A) मास्की तथा गुज्जरा अभिलेखों में

Q.12 अशोक ने बोद्ध धर्म के किन त्रिरत्नों के प्रति अपनी आस्था प्रकट की थी?

(A) अशोक ने बोद्ध धर्म के त्रिरात्नो ---- बुद्ध, धम्म, और संध के प्रति आस्था प्रकट की थी

Q.13 कौटिल्य के अनुसार राज्य के सात अंग कौनसे हैं?

(A) राजा, अमात्य, जनपद, दुर्ग कोष, सेना मित्र

Q.14 कौटिल्य के अनुसार मौर्यों का शासन कितने विभागों में विभाजित था?

(A) 18 भागों

Q.15 अशोक के अभिलेख को सर्वप्रथम पढ़ने में किसे सफलता मिली थी?

(A) जेम्स प्रिन्सेप को

Q.16 मौर्यों के केन्द्रीय प्रशासन के 4 तीर्थो के नाम लिखिए?

(A) मंत्री, पुरोहित, सेनापति, युवराज

Q.17 सन्निधाता कौन था?

(A) कौशाध्यक्ष

Q.18 अशोक के समय मौर्य साम्राज्य किन प्रान्तों में विभक्त था?

(A) उत्तरापथ, अवन्ती राष्ट्र, कलिंग, दक्षिणा पथ, मध्य देश

Q.19 शुंग वंश की स्थापन कब हुई थी?

(A) 185 ईसा पूर्व

Q.20 शुंग वश की स्थापना किस शासक ने की थी?

(A) पुष्यमित्र शुंग ने

Q.21 पुष्यमित्र शुंग के अश्वमेघ यज्ञ में पुरोहित का कार्य किस पुरोहित ने किया था?

(A) पंतजलि ने

Q.22 सातवाहन वश की स्थापना किस शासक ने की थी?

(A) सिमुक नामक व्यक्ति ने

Q.23 शुंग वंश की स्थापन कब हुई थी?

(A) 60 ईसा पूर्व में

Q.24 गुप्त साम्राज्य की स्थापना किसने की थी?

(A) श्रीगुप्त ने

Q.25 समुद्रगुप्त की उपलब्धियों और विजयों के बारें में सक प्रमुख स्त्रोत से जानकारी मिलाती हैं?

(A) प्रयाग प्रशस्ति से

Q.26 गुप संवत की शुरुआत कब हुई थी?

(A) 319 – 320 ईसा पूर्व में

Q.27 चन्द्रगुप्त मौर्य मगध के राजसिंहासन पर कब बैठा?

(A) 322

Q.28 चन्द्रगुप्त मौर्य ने यूनानी शासक को पराजित किया?

(A) 305


मुग़ल उत्तराधिकारी

औरंगजेब की मृत्यु ने मुग़ल साम्राज्य के पतन की नींव डाली क्योंकि उसकी मृत्यु के पश्चात उसके तीनों पुत्रों-मुअज्जम,आज़म और कामबक्श के मध्य लम्बे समय तक चलने वाले उत्तराधिकार के युद्ध ने शक्तिशाली मुग़ल साम्राज्य को कमजोर कर दिया. औरंगजेब ने अपने तीनों पुत्रों को प्रशासनिक उद्देश्य से अलग अलग क्षेत्रों का गवर्नर बना दिया था,जैसे-मुअज्ज़म काबुल का,आज़म गुजरात और कामबक्श बीजापुर का गवर्नर था .इसी कारण इन तीनों के मध्य मतभेद पैदा हुए,जिसने उत्तराधिकार को लेकर गुटबंदी को जन्म दिया.औरंगजेब की मृत्यु के बाद उत्तरवर्ती मुग़लों के मध्य होने वाले उत्तराधिकार-युद्ध का विवरण निम्नलिखित है-


मुअज्ज़म(1707-1712 ई.)

·         वह शाह आलम प्रथम के नाम से जाना जाता था, जिसे खफी खां ने ‘शाह-ए–बेखबर’ भी कहा है क्योंकि वह शासकीय कार्यों के प्रति बहुत अधिक लापरवाह था.

·         वह अपने दो भाइयों की हत्या करने और कामबक्श को जाजऊ के युद्ध में हराने के बाद 1707 ई. में मुग़ल राजगद्दी पर बैठा.वह अपने शासकीय अधिकारों का स्वतंत्र रूप से प्रयोग करने वाला अंतिम मुग़ल शासक था.

·         उसने सिक्खों एवं मराठों के साथ मधुर सम्बन्ध स्थापित करने का प्रयास किया.उसने इसीलिए मराठों को दक्कन की सरदेशमुखी वसूलने का अधिकार दे दिया लेकिन चौथ वसूलने का अधिकार नहीं दिया.

·         मुअज्ज़म की मृत्यु के बाद उसके पुत्रों- जहाँदार शाह ,अज़ीम-उस-शाह, रफ़ी-उस-शाह और जहाँशाह, के मध्य नए सिरे से उत्तराधिकार को लेकर युद्ध प्रारंभ हो गया


जहाँदार शाह(1712-1713 ई.)

·         उसने मुगल दरबार में ईरानी गुट के नेता जुल्फिकार खान के सहयोग से अपने तीन भाइयों की हत्या के बाद राजगद्दी प्राप्त की .

·         वह जुल्फिकार खान ,जो वास्तविक शासक के रूप में कार्य करता था ,के हाथों की कठपुतली मात्र था.यहीं से शासक निर्माताओ की संकल्पना का उदय हुआ .वह अपनी प्रेमिका लाल कुंवर के भी प्रभाव में था जोकि मुग़ल शासन पर नूरजहाँ के प्रभाव की याद दिलाता है .

·         उसने मालवा के जय सिंह को ‘मिर्जा राजा’ और मारवाड़ के अजित सिंह को ‘महाराजा’ की उपाधि प्रदान की.

·         उसके द्वारा मराठों को चौथ और सरदेशमुखी वसूलने के अधिकार प्रदान करने के कदम ने मुग़ल शासन के प्रभुत्व को कमजोर बनाने की शुरुआत की.

·         उसने इजारा पद्धति अर्थात् राजस्व कृषि/अनुबंध कृषि को बढावा दिया और जजिया कर को बंद किया.

·         वह प्रथम मुग़ल शासक था जिसकी हत्या सैय्यद बंधुओं-अब्दुल्लाह खान और हुसैन अली(जो हिन्दुस्तानी गुट के नेता थे) के द्वारा कैदखाने  में की गयी थी.

फर्रुखसियर(1713-1719 ई.)

·         वह ‘साहिद-ए-मजलूम’ के नाम से जाना जाता था और  अज़ीम-उस-शाह का पुत्र था.

·         वह  सैय्यद बंधुओं के सहयोग से मुग़ल शासक बना था.

·         उसने ‘निज़ाम-उल-मुल्क’ के नाम से मशहूर चिनकिलिच खान को दक्कन का गवर्नर नियुक्त किया,जिसने बाद में स्वतंत्र राज्य-हैदराबाद की स्थापना की .

·         उसके समय में ही पेशवा बालाजी विश्वनाथ मराठा-क्षेत्र पर सरदेशमुखी और चौथ बसूली के अधिकार को प्राप्त करने के लिया मुग़ल दरबार में उपस्थित हुए थे.


रफ़ी-उद-दरजात(1719 ई.)

·         वह कुछ महीनों तक ही शासन करने वाले मुग़ल शासकों में से  एक  था.

·         उसने निकुस्सियर के विद्रोह के दौरान आगरा के किले पर कब्ज़ा कर लिया और खुद को शासक घोषित कर दिया.


रफ़ी-उद-दौला(1719 ई.)

·         वह ‘शाहजहाँ द्वितीय’ के नाम से जाना जाता है.

·         उसके शासनकाल के दौरान ही अजित सिंह अपनी विधवा पुत्री को मुग़ल हरम से वापस ले गए थे और बाद में उसने हिन्दू धर्म अपना लिया .


मुहम्मद शाह(1719-1748 ई.)

·         उसका नाम रोशन अख्तर था जोकि प्रभाव-हीन और आराम-पसंद मुग़ल शासक था.अपनी आराम-पसंदगी की प्रवृत्ति के कारण ही वह ‘रंगीला’ नाम से भी जाना जाता था.

·         उसके शासनकाल के दौरान ही मराठों ने बाजीराव के नेतृत्व में ,मुग़ल इतिहास में पहली बार,  दिल्ली पर धावा बोला.

·         इसी के शासनकाल में फारस के नादिर शाह ने ,सादत खान की सहायता से ,दिल्ली पर आक्रमण किया और करनाल के युद्ध में मुग़ल सेना को पराजित किया.


अहमद शाह(1748-1754 ई.)

·         इसके शासनकाल के दौरान नादिरशाह के पूर्व सेनापति अहमदशाह अब्दाली ने भारत पर पांच बार आक्रमण किया .

·         इसे इसी के वजीर इमाद-उल-मुल्क द्वारा शासन से अपदस्थ कर आलमगीर द्वितीय को नया शासक नियुक्त किया गया .


आलमगीर द्वितीय(1754-1759ई.)

·         वह ‘अजीजुद्दीन’ के नाम से जाना जाता था .

·         इसी के शासनकाल के दौरान प्लासी का युद्ध हुआ .

·         इसे इसी के वजीर इमाद-उल-मुल्क द्वारा शासन से अपदस्थ कर शाहआलम द्वितीय को नया शासक नियुक्त किया गया


शाहआलम द्वितीय(1759-1806ई.)

·          ‘अली गौहर’ के नाम से प्रसिद्ध इस मुग़ल शासक की बक्सर के युद्ध (1764ई .)में हार हुई थी .

·         इसी के शासनकाल के दौरान पानीपत की तीसरा युद्ध हुआ .

·         बक्सर के युद्ध के बाद इलाहाबाद की संधि के तहत मुगलों द्वारा बंगाल ,बिहार और उड़ीसा के दीवानी अधिकार अंग्रेजो को दे दिए जिन्हें 1772 ई. के बाद महादजी सिंधिया के सहयोग से पुनः मुगलों ने प्राप्त किया .

·         वह प्रथम मुग़ल शासक था जो ईस्ट इंडिया कम्पनी का पेंशनयाफ्ता था .


अकबर द्वितीय(1806-1837ई.)

·         वह अंग्रेजो के संरक्षण में बनने वाला प्रथम मुग़ल बादशाह था.

·         इसके शासनकाल में मुग़ल सत्ता लालकिले तक सिमटकर रह गई .


बहादुरशाह द्वितीय( 1837-1862ई.)

·         वह अकबर द्वितीय और राजपूत राजकुमारी लालबाई का पुत्र एवम् मुग़ल साम्राज्य का अंतिम शासक था.

·         इसके शासनकाल के दौरान 1857 की क्रांति हुई और उसी के बाद इसे बंदी के रूप में रंगून निर्वासित कर दिया गया जहाँ 1862 ई.में इसकी मृत्यु हो गई.

·         वह ‘जफ़र’ उपनाम से बेहतरीन उर्दू शायरी लिखा करता था.


मुग़ल साम्राज्य के पतन के कारण

मुग़ल साम्राज्य का पतन एकाएक न होकर क्रमिक रूप में हुआ था,जिसके प्रमुख कारण निम्नलिखित  थे-

·         साम्राज्य का बृहद विस्तार: इतने विस्तृत साम्राज्य पर सहकारी संघवाद के बिना शासन करना आसान नहीं था. अतः मुग़ल साम्राज्य अपने आतंरिक कारणों से ही डूबने लगा .

·         केंद्रीकृत प्रशासन:इतने वृहद् साम्राज्य को विकेंद्रीकरण और विभिन्न शासकीय इकाइयों के  आपसी सहयोग के आधार पर ही शासित किया जा सकता था.

·         औरंगजेब की नीतियाँ: उसकी धार्मिक नीति,राजपूत नीति और दक्कन नीति ने असंतोष को जन्म दिया जिसके कारण मुग़ल साम्राज्य का विघटन प्रारंभ हो गया.

·         उत्तराधिकार का युद्ध: उत्तराधिकार को लेकर लम्बे समय तक चलने वाले युद्धों ने मुग़लों की प्रशासनिक इकाइयों में दरार पैदा कर दी.

·         उच्च वर्ग की कमजोरी: मुग़ल उच्च वर्ग मुग़लों के प्रति अपनी वफ़ादारी के लिए जाना जाता था लेकिन उत्तराधिकार के युद्धों के कारण उनकी वफ़ादारी बंट गयी.




शिवाजी

सत्रहवी सदी के प्रारंभिक वर्षों में जब पूना जिले के भोंसले परिवार ने स्थानीय निवासी  होने का लाभ उठाते हुए अहमदनगर राज्य से सैनिक व राजनीतिक लाभ प्राप्त किये तो एक नई लड़ाकू जाति का उदय हुआ जिसे ‘मराठा’ कहा गया. उन्होंनें बड़ी संख्या में मराठा सरदारों और सैनिकों को अपनी सेनाओं में भर्ती किया.शिवाजी शाह जी भोंसले और जीजा बाई  के पुत्र थे.शिवाजी का पालन-पोषण पूना में उनकी माता और एक योग्य ब्राह्मण दादाजी कोंडदेव के देख-रेख में हुआ था. दादाजी कोंडदेव ने शिवाजी को एक अनुभवी योध्दा और सक्षम प्रशासक बनाया. शिवाजी गुरु रामदास के धार्मिक प्रभाव में भी आये,जिसने उनमे अपनी जन्मभूमि के प्रति गौरव भाव जाग्रत किया.


शिवाजी के जीवन की महत्वपूर्ण घटनाएँ

·         तोरण की विजय: यह मराठा सरदार के रूप में शिवाजी द्वारा कब्जाया गया पहला किला था, जिसने सोलह वर्षा की उम्र में ही उनमें निहित पराक्रम,दृढ़निश्चय और शासकीय गुणों का परिचय दे दिया.इस जीत ने उन्हें रायगढ़ और प्रतापगढ़ जैसे किलों पर कब्ज़ा करने के लिये  प्रेरित किया. शिवाजी की इन जीतों से परेशां होकर बीजापुर के सुल्तान ने उनके पिता शाहजी को कैद में डाल दिया. 1659 ई. में,जब शिवाजी ने पुनः बीजापुर पर आक्रमण करने का प्रयास किया,तो बीजापुर के सुल्तान ने अपने सेनापति अफजल खान को शिवाजी को पकड़ने के लिये भेजा लेकिन शिवाजी भागने में सफल रहे और अफजल खान की,अपने ‘बाघनख’ या ‘शेर का पंजा’ कहे जाने वाले खतरनाक हथियार से,हत्या कर दी. अंततः 1662 ई. में बीजापुर के सुल्तान ने शिवाजी के साथ शांति समझौता कर लिया और शिवाजी को उनके द्वारा जीते


गए क्षेत्रों का स्वतंत्र शासक बना दिया.

·         कोंडाना किले की जीत: यह किला नीलकंठ राव के नियंत्रण में था जिसके लिए मराठा शासक शिवाजी के सेनापति तानाजी मालसुरे और जय सिंह के अधीन किलेदार उदयभान राठौर के बीच युद्ध हुआ.

·         शिवाजी का राज्याभिषेक: 1674 ई. में रायगढ़ में शिवाजी ने खुद को मराठा राज्य का स्वतंत्र शासक घोषित किया और ‘छत्रपति’ की उपाधि धारण की. उनका राज्याभिषेक मुग़ल आधिपत्य को चुनौती देने वाले लोगों के उत्थान का प्रतीक था.राज्याभिषेक के बाद उन्होंने नव-निर्मित ‘हिन्दवी स्वराज्य’ के शासक के रूप में ‘हैन्दव धर्मोद्धारक’ (हिन्दू आस्था का संरक्षक) की उपाधि धारण की. इस राज्याभिषेक ने शिवाजी को भू-राजस्व वसूलने और लोगों पर कर लगाने का वैधानिक अधिकार प्रदान कर दिया.

·         गोलकुंडा के कुतुबशाही शासकों के साथ गठबंधन: इस गठबंधन के सहयोग से उन्होंने बीजापुर,कर्नाटक (1676-79ई.) पर चढाई की और जिंजी,वेल्लोर और कर्नाटक के कई अन्य किलों को जीता.


शिवाजी का प्रशासन

शिवाजी का प्रशासन दक्कन के प्रशासन से काफी प्रभावित था. उसने आठ मंत्रियों को नियुक्त किया जिन्हें ‘अष्टप्रधान’ कहा जाता था. ‘अष्टप्रधान’ उसे प्रशासनिक कार्यों के सम्बन्ध में सलाह प्रदान करते थे.

·         ‘पेशवा’ सबसे प्रमुख मंत्री था जो वित्त और सामान्य प्रशासन की देख-रेख करता था.

·         ‘सेनापति’(सर-ए-नौबत) सेना की भर्ती,संगठन,रसद आपूर्ति की देख-रेख करता था.

·         ‘मजमुआदर’ आय-व्यय के लेखों की जाँच करता था.

·         ‘वाकिया-नवीस’ आसूचना एवं गृह कार्यों की देख-रेख करता था.

·         ‘शुर-नवीस’ या ‘चिटनिस’ राजा को राजकीय पत्र-व्यवहार में सहयोग प्रदान करता था.

·         ‘दबीर’ राजा को विदेश कार्यों में सहायता प्रदान करता था.

·         ‘न्यायाधीश’ और ‘पंडितराव’ न्याय और धर्मार्थ अनुदानों के प्रमुख थे.

उसने भूमि पर भू-राजस्व के एक-चौथाई की दर से शुल्क लगाया जिसे ‘चौथ’ या ‘चौथाई’ कहा गया. शिवाजी ने स्वयं को न केवल एक कुशल रणनीतिकार,योग्य सेनापति और चतुर कूटनीतिज्ञ के रूप में साबित किया बल्कि देशमुखी की शक्तियों का प्रयोग कर एक शक्तिशाली राज्य की नींव रख दी.

मराठा प्रशासन
मराठा राज्य ने हिन्दुओं को उच्च पदों पर नियुक्त किया और फारसी की जगह मराठी को राजभाषा का दर्जा दिया.उन्होंने राजकीय प्रयोग हेतु ‘राज व्याकरण कोश’ नाम से स्वयं का एक शब्दकोश निर्मित किया. मराठा साम्राज्य का अध्ययन निम्नलिखित तीन शीर्षकों के तहत किया जा सकता है-केंद्रीय प्रशासन,राजस्व प्रशासन और सैन्य प्रशासन.


केंद्रीय प्रशासन:

·         इसकी स्थापना शिवाजी द्वारा समर्थ प्रशासनिक प्रणाली हेतु की गयी थी जोकि मुख्यतः दक्कन की  प्रशासनिक शैली से प्रेरित था. अधिकतर प्रशासनिक सुधारों की प्रेरणा अहमदनगर में मालिक अम्बर द्वारा किये प्रशासनिक सुधारों से मिली थी.

·         राजा सर्वोच्च पदाधिकारी था जिसकी सहायता ‘अष्टप्रधान’ नाम से जाना जाने वाला आठ मंत्रियों का समूह करता था.

अष्टप्रधान

·         पेशवा या प्रधानमंत्री-यह सामान्य प्रशासन की देख-रेख करता था.

·         अमात्य या मजूमदार-यह लेखा प्रमुख था जो बाद में राजस्व एवं वित्त मंत्री बन गया.

·         सचिव या शुरु-नवीस- इसे चिटनिस भी कहा जाता था और ये राजकीय पत्राचार का कार्य देखता था.

·         सुमंत या दबीर- यह राजकीय समारोहों और  विदेश मामलों का प्रमुख मंत्री था.

·         सेनापति या सर-ए-नौबत- यह सेना प्रमुख था जो सैन्य भर्ती,प्रशिक्षण एवं अनुशासन की देख-रेख करता था.

·         मंत्री या वाकिया-नवीस- यह आसूचना,राजा की निजी सुरक्षा एवं अन्य गृह-कार्यों का प्रमुख था.

·         न्यायाधीश- यह न्याय प्रशासन का प्रमुख था.

·         पंडितराव- यह राज्य के धर्मार्थ एवं धार्मिक कार्यों का प्रमुख था और जनता के नैतिक उत्थान के लिए कार्य करता था.

·         पेशवा,मंत्री एवं सचिव नाम के तीन मंत्रियों को अपने विभागीय दायित्वों के अतिरिक्त बड़े  प्रान्तों के प्रभारी का दायित्व भी सौंपा जाता था.

·         न्यायाधीश और पंडितराव को छोड़कर बाकि सभी मंत्रियों को अपने असैनिक दायित्वों के अतिरिक्त सैनिक कमान भी संभाली होती थी.

 मंत्री को निम्नलिखित आठ मुंशियों/लिपिकों द्वारा सहयोग प्रदान किया जाता था-

   दीवान- सचिव.

   मजुमदार- लेखा परीक्षक एवंलेखाकार.

   फडनीस- उप-लेखा परीक्षक.

   सबनीस या दफ्तरदार- दफ्तर का प्रमुख.

   चिटनिस- पत्राचार लिपिक.

   जामदार- कोषाधिकारी.

   पोतनीस- रोकड़ अधिकारी.

   कारखानीस- प्रतिनिधि.

·         शिवाजी ने अपने संपूर्ण राज्य को चार प्रान्तों में विभक्त किया और प्रत्येक प्रान्त एक राज-प्रतिनिधि(वायसराय) के अधीन होता था.उसने प्रान्तों(सूबों) को पुनः परगनों और तालुकों में विभक्त किया.परगनों के अंतर्गत तरफ और मौजे आते थे.प्रशासन की सबसे छोटी इकाई ग्राम होती थी जिसका मुखिया पाटिल(पटेल) होता था.

राजस्व प्रशासन:

·         शिवाजी ने जमींदारी प्रणाली को समाप्त कर दिया और उसकी जगह रैय्यतवारी प्रणाली लागू की और देशमुख,देशपांडे,पाटिल और कुलकर्णी नाम से प्रसिद्ध वंशानुगत राजस्व कर्मचारियों की स्थिति में परिवर्तन किया.

·         शिवाजी ने मिरासदारों,जिनके पास भूमि के वंशानुगत अधिकार थे,पर कड़ी निगरानी रखी.

·         राजस्व प्रणाली मालिक अम्बर की काठी प्रणाली पर आधारित थी.इस प्रणाली के अनुसार, भूमि के प्रत्येक भाग की माप छड़ी या काठी से की जाती थी.

·         चौथ और सरदेशमुखी उनकी आय के अन्य स्रोत थे. चौथ कुल राजस्व का चौथाई भाग था जिसे गैर-मराठा क्षेत्रों से ,मराठा आक्रमण से बचने के एवज में, मराठों द्वारा वसूला जाता था.सरदेशमुखी एक अतिरिक्त कर था जो आय का दस प्रतिशत होता था और राज्य से बाहर स्थित क्षेत्रों से वसूला जाता था.

सैन्य प्रशासन:

·         शिवाजी ने एक अनुशासित और कुशल सेना तैयार की.सामान्य सैनिकों को नकद भुगतान किया जाता था ,लेकिन बड़े-बड़े सरदारों और सेनापति को भुगतान जागीर अनुदान(सरंजाम या मोकासा) के रूप में किया जाता था.

·         सेना में पैदल सेना (जैसे-मावली सैनिक), घुड़सवार (जैसे-बारगीर एवं सिलेदार ),साजो-सामान ढोनें वाले और नौसेना शामिल थी.

सैन्य अधिकारी/कर्मचारी

सर-ए-नौबत(सेनापति)- सेना प्रमुख

किलादार- किलों का अधिकारी

पायक- पैदल सैनिक

नायक- पैदल सेना की एक टुकड़ी का प्रमुख

हवलदार- पांच नायकों का प्रमुख

जुमलादार- पांच हवलदारों का प्रमुख.

घुराव- बंदूकों से लदी नाव


गल्लिवत- 40-50 खेवैयों द्वारा खेने वाली नाव

·         मराठा राज्य ,जहाँ त्वरित सैन्य अभियान महत्वपूर्ण थे, की नीतियों के निर्धारण में सेना एक प्रभावी उपकरण थी. केवल वर्षा ऋतु में सेना आराम करती थी अन्यथा पूरे साल अभियानों में व्यस्त रहती थी.

·         पिंडारियों को सेना के साथ जाने की अनुमति थी जिन्हें “पाल-पट्टी”,जोकि युद्ध में लुटे गए माल का 25 प्रतिशत थी ,को वसूलने की अनुमति प्रदान की गयी थी .


बक्सर की लड़ाई
बक्सर का युद्ध बंगाल के नवाब मीर कासिम,अवध के नवाब सुजाउद्दौला व मुग़ल शासक शाह आलम द्वितीय की संयुक्त सेना और अंग्रेजों के मध्य लड़ा गया था | यही वह निर्णायक युद्ध था जिसने अंग्रेजों को अगले दो सौ वर्षों के लिए भारत के शासक के रूप में स्थापित कर दिया| यह युद्ध अंग्रेजों द्वारा फरमान और दस्तक के दुरुपयोग और उनकी विस्तारवादी व्यापारिक आकांक्षाओं का परिणाम था|

22 अक्टूबर,1764 ई.   को लड़े गए बक्सर के युद्ध में संयुक्त भारतीय सेना की पराजय हुई| बक्सर का युद्ध भारतीय इतिहास की युगांतरकारी घटना साबित हुई |1765 ई. में सुजाउद्दौला और शाह आलम ने इलाहाबाद में कंपनी गवर्नर क्लाइव के साथ संधि पर हस्ताक्षर किये| इस संधि के तहत,कंपनी को बंगाल,बिहार और उड़ीसा के दीवानी अधिकार प्रदान कर दिए गए, जिसने कंपनी को इन क्षेत्रों से राजस्व वसूली के लिए अधिकृत कर दिया|कंपनी ने अवध के नवाब से कड़ा और इलाहाबाद के क्षेत्र लेकर मुग़ल शासक को सौंप दिए,जोकि अब इलाहाबाद में अंग्रेजी सेना के संरक्षण में रहने लगा था|कंपनी ने मुगल शासक को प्रतिवर्ष 26 लाख रुपये के भुगतान का वादा किया लेकिन थोड़े समय बाद ही कंपनी द्वारा इसे बंद कर दिया गया|कंपनी ने नवाब को किसी भी आक्रमण के विरुद्ध सैन्य सहायता प्रदान करने का वादा किया लेकिन इसके लिए नवाब को भुगतान करना होगा|अतः अवध का नवाब कंपनी पर निर्भर हो गया| इसी बीच मीर जाफर को दोबारा बंगाल का नवाब बना दिया गया| उसकी मृत्यु के बाद उसके पुत्र को नवाब की गद्दी पर बैठाया गया| कंपनी के अफसरों ने नवाब से धन ऐंठ कर व्यक्तिगत रूप से काफी लाभ कमाया|

युद्ध के लिए जिम्मेदार घटनाएँ

·         ब्रिटिशों द्वारा दस्तक और फरमान का दुरुपयोग,जिसने मीर कासिम के प्राधिकार और प्रभुसत्ता को चुनौती दी

·         ब्रिटिशों के आतंरिक व्यापार पर सभी तरह के शुल्कों की समाप्ति

·         कंपनी के कर्मचारियों का दुर्व्यवहार : उन्होंने भारतीय दस्तकारों, किसानोंऔर व्यापारियों को अपना माल सस्ते में बेचने के लिए बाध्य किया और रिश्वत व उपहार लेने की परंपरा की भी शुरुआत कर दी|

·         ब्रिटिशों का लुटेरों जैसा व्यवहार जिसने न केवल व्यापार के नियमों का उल्लंघन किया बल्कि नवाब के प्राधिकार को भी चुनौती दी|

निष्कर्ष

बक्सर का युद्ध भारतीय इतिहास की युगांतरकारी घटना साबित हुई | ब्रिटिशों की रूचि तीन तटीय क्षेत्रों कलकत्ता ,बम्बई और मद्रास में अधिक थी| अंग्रेजों व फ्रांसीसियों के बीच लड़े  गए कर्नाटक युद्ध ,प्लासी के युद्ध और बक्सर के युद्ध ने भारत में ब्रिटिश सफलता के दौर को प्रारंभ कर दिया|1765 ई. तक ब्रिटिश बंगाल,बिहार और उड़ीसा के वास्तविक शासक बन गए| अवध और कर्नाटक के नवाब(जिसे उन्होंने ही नवाब बनाया था) उन पर निर्भर हो गए|

रेग्युलेटिंग एक्ट, 1773
बंगाल के कुप्रशासन से उपजी परिस्थितियों ने ब्रिटिश संसद को ईस्ट इंडिया कंपनी के कार्यों की जाँच हेतु बाध्य कर दिया| इस जाँच में कंपनी के उच्च अधिकारियों द्वारा अपने अधिकारों के दुरुपयोग के अनेक मामले सामने आये| उस समय कंपनी वित्तीय संकट से भी गुजर रही थी और ब्रिटिश सरकार के समक्ष एक मिलियन पौंड के ऋण हेतु आवेदन भी भेज चुकी थी| ब्रिटिश संसद ने पाया कि भारत में कंपनी की गतिविधियों को नियंत्रित करने की जरुरत है और इसी जरुरत की पूर्ति के लिए 1773 ई. में रेग्युलेटिंग एक्ट पारित किया गया|

यह एक्ट भारत के सम्बन्ध प्रत्यक्ष हस्तक्षेप हेतु ब्रिटिश सरकार द्वारा उठाया गया पहला कदम था |इस एक्ट का उद्देश्य व्यापारिक कंपनी के हाथों से राजनीतिक शक्ति छीनने की ओर एक कदम बढाना था| इस एक्ट द्वारा नए प्रशासनिक ढांचे की स्थापना के लिए भी कुछ विशेष कदम उठाये गए| कंपनी की कलकत्ता फैक्ट्री के अध्यक्ष ,जिसे बंगाल का गवर्नर कहा जाता था, को कंपनी के भारत में स्थित सभी क्षेत्रों का गवर्नर जनरल बना दिया गया और बम्बई व मद्रास के दो अन्य गवर्नरों को उसके अधीन कर दिया गया|उसकी सहायता के लिए चार सदस्यों की एक परिषद् का गठन किया गया| इस एक्ट में न्यायिक प्रशासन के लिए कलकत्ता में एक सुप्रीम कोर्ट की स्थापना का प्रस्ताव भी शामिल किया गया|

बहुत जल्द ही रेग्युलेटिंग एक्ट की कमियां उजागर होने लगीं| प्रथम गवर्नर जनरल वारेन हेस्टिंग्स और परिषद् के सदस्यों के बीच लगातार विवाद की स्थिति बनी रही| सुप्रीम कोर्ट भी अपना कार्य बेहतर ढ़ंग से नहीं कर पा रही थी क्योंकि उसके न्यायाधिकरण और परिषद के साथ उसके संबंधों को लेकर स्थिति स्पष्ट नहीं थी|साथ ही यह भी स्पष्ट नहीं था कि वे भारतीय कानून का अनुसरण करे या फिर ब्रिटिश कानून का| इस न्यायालय ने मुर्शिदाबाद के पूर्व दीवान और जाति से ब्राह्मण –नन्द कुमार,को जालसाजी के आरोप में मृत्युदंड की सजा सुनायी जबकि भारत में इस अपराध के लिए किसी भी ब्राह्मण को मृत्युदंड की सजा नहीं दी जा सकती थी| इस मामले ने बंगाल में काफी सनसनी पैदा कर दी| इस एक्ट के लागू होने के बाद भी कंपनी के ऊपर ब्रिटिश सरकार का नियंत्रण स्पष्ट नहीं था|


प्राचीन भारत का इतिहास: एक समग्र अध्ययन सामग्री

“प्राचीन भारत के इतिहास” की अध्ययन सामग्री को घटनाओं के कालक्रम के अनुसार 5 मुख्य भागों में बांटा गया है| हमें यह यकीन है यह सामग्री न केवल स्कूल जाने वाले छात्रों/छात्राओं बल्कि प्रतियोगी परीक्षाओं की तैयारी कर रहे प्रतिभागियों के लिए भी बहुत ही महत्वपूर्ण होगी|

जैसा कि आप सभी लोग जानते हैं कि विभिन्न प्रतियोगी परीक्षाओं जैसे IAS, PSC, SSC और CDS  में ‘प्राचीन भारत के इतिहास’ से सम्बंधित प्रश्न काफी संख्या में प्रति वर्ष पूछे जाते हैं| इसलिए आप इस विषय की महत्ता को अच्छी तरह समझते होंगे| इसी कारण आपकी सुविधा के लिए jagranjosh.com ने सम्पूर्ण अध्ययन सामग्री को उसके कालक्रम के अनुसार ‘वैदिक काल और उत्तर वैदिक काल’, पूर्व मौर्य, मौर्य शासन, ‘गुप्ता के बाद का युग’ और ‘हर्षवर्धन काल’ में बांटा है और उसको एक ही क्लिक पर उपलब्ध करा दिया है|

"प्राचीन भारत का इतिहास" पर इस व्यापक अध्ययन सामग्री को NCERT की पुस्तकों, R.S. शर्मा के (भारत के प्राचीन अतीत), और Keay के (भारत: इतिहास) जैसी कुछ महत्वपूर्ण पुस्तकों से रेफरेंस लेकर बनाया गया है।

वैदिक काल और उत्तर वैदिक काल



यह माना गया है कि आर्य भारत के मूल निवासी नहीं थे | कुछ इतिहासविद कहते हैं कि आर्यन का वास्तविक घर मध्य  एशिया में था | दूसरे इतिहासविदों का मत था कि इनका वास्तविक घर दक्षिणी रूस ( कैस्पियन समुद्र के पास ) या दक्षिण-पूर्व यूरोप (ऑस्ट्रिया और हंगरी) में  था | वे आर्य जो  भारत में बस गए थे, इंडो-आर्यन कहलाए | बाल गंगाधर तिलक कहते थे कि आर्यन साइबेरिया में बसे थे परंतु गिरते तापमान की वजह से उन्होने हरियाली के लिए साइबेरिया छोड़ दिया था |

भौतिक जीवन

• ऋग वैदिक आर्यन अपनी सफलता का श्रेय उनके घोड़ो, रथों और पीतल के हथियारों के प्रति समझ को देते थे  |
• वे राजस्थान के खेत्री प्रांत से तांबे का कारोबार करते थे |
• बुवाई, कटाई और खलिहान के लिए आर्यन लकड़ी के हलों का हिस्सेदारी में प्रयोग करते थे |
• आर्यन की सबसे महत्वपूर्ण संपत्ति गाय थी |
• आर्य जोकि देहाती थे, इनकी ज़्यादातर लड़ाइयाँ गाय के तबेलों पर नियंत्रण के लिए होती थीं | इन लड़ाइयों को ऋग्वेद में गवीस्थि या गायों की खोज कहा जाता था |
• जमीन को निजी संपत्ति के रूप में नहीं देखा जाता था |
• तांबा, लोहा और पीतल जैसे धातुओं का प्रयोग होता था |
• कुछ लोग सुनार, कुम्हार, सूत कातने वाले और बढ़ई का काम करते थे |

आदिवासी राजनीति

• आदिवासी मुखिया को राजन कहा जाता था और उसका स्थान वंशानुगत होता था |
• राजा के साथ आदिवासी सभाएं  जैसे सभा, समिति, गण और विधाता भी निर्णय लेनी की ताकत रखते थे |
• पूर्व वैदिक काल में महिलाएं भी सभा और विधाता में भाग ले सकती थीं |
• दो मुख्य पदाधिकारी जो राजा की मदद कर सकते थे :

I. पुरोहित या मुख्य पंडित
II. सेनान्त या सेना प्रमुख

• वैदिक युग में लगाए गए कर बाली व भाग थे |
• गलत काम करने वालों पर नज़र रखने के लिए जासूस नियुक्त किए गए थे |
• वे अधिकारी जो गाँव में बस गए थे और ज़मीन पर कब्जा कर लिया था उन्हे व्रजपति कहते थे |
• व्रजपति क्षेत्र सेना की नियंत्रण में थे और परिवारों (कुलपा )के मुखिया  और युद्ध के लिए सेना बटालियनों (ग्रामणि कहते थे) का नेतृत्व करते थे |
• आर्यन के पास स्थायी सेना नहीं थी पर वे कुशल सेनानी थे |
• वे प्रकृति से आदिवासी थे और इसलिए इनकी निश्चित प्रशासनिक व्यवस्था नहीं थी क्यूंकि वे लगातार घूमते रहते थे |

आदिवासी और परिवार

• लोगों को उनकी जाति से पहचाना जाता था|
• आर्यन के जीवन में आदिवासी (जन या विस ) एक महत्वपूर्ण किरदार अदा करते थे |
• विस आगे ग्राम या योद्धाओं से बनी हुई छोटी आदिवासी इकाइयों में विभाजित था |
• जब दो ग्राम आपस में एक दूसरे से लड़ते थे, उससे संग्राम या युद्ध कहा जाता था |
• ऋग्वेद में परिवार के लिए कुल या गृह शब्द प्रयोग किया गया है |
• आर्य सयुंक्त परिवार में रहते थे |
• रोमन की तरह वे पितृसत्ता को मानते थे जैसे परिवार का मुखिया पिता होता था |
• लोग बेटों को बेटियों से ज्यादा पसंद करते थे और बलिदान के समय इसके लिए प्रार्थना भी करते थे |
• महिलाएं राजनीतिक सभाओं में भाग ले सकती थीं और अपने पतियों के साथ बलिदान भी कर सकती थीं |
• ऋग्वेद में एक से अधिक पति रखने का भी वैवाहिक नियम था और ऐसे कई घटनाएँ हैं जिसमे मृत भाई की पत्नी से विवाह किया गया हो और विधवा का दोबारा विवाह किया गया हो |
• बाल विवाह के कोई भी साक्ष्य मौजूद नहीं हैं और विवाह के लिए 16 या 17 वर्ष उपयुक्त मानी गई है |

सामाजिक विभाजन

• आर्य वर्ण के प्रति सचेत थे और उन्होने वर्ण के आधार पर जातिय भेदभाव शुरू कर दिया |(शाब्दिक अर्थ रंग )
• आर्य मूल निवासियों से रंगरूप में गोरे थे जिसने सामाजिक प्रणाली को जन्म दिया |
• दास और दस्यु से गुलामों की तरह व्यवहार किया जाता था और शूद्र को जाति प्रणाली में सबसे निम्न दर्जा दिया गया था |
• आदिवासी मुखिया युद्ध में लूटे गए माल में सबसे ज्यादा हिस्सा प्राप्त करता था और ताकतवर हो जाता था |
• ईरान की तरह आदिवासी समाज तीन दलों में विभाजित हो गया :

I. योद्धा 
II. पुरोहित
III. आम लोग

उत्तरकालीन वैदिक युग में आर्थिक व सामाजिक जीवन

प्रधान भाग : वह काल जिसने ऋग वैदिक युग का अनुसरण किया वह उत्तरकालीन वैदिक के नाम से जाना गया |

I. उत्तरकालीन युग में आर्थिक जीवन

• वैदिक लेखों में समुद्र व समुद्री यात्राओं का उल्लेख है | यह ये दर्शाता है कि वर्तमान का समुद्री व्यापार आर्यन के द्वारा शुरुं किया गया था |
• धन उधार  देना एक फलता फूलता व्यापार था | श्रेस्थिन शब्द यह बताता है कि  इस युग में सम्पन्न व्यापारी थे और शायद वे सभा के रूप में संगठित थे |
• आर्यन ने सिक्कों का प्रयोग नहीं किया परंतु सोने की मुद्राओं के लिए विशेष सोने के वज़नों का प्रयोग किया गया | सतमाना, निष्का, कौशांभी, काशी और विदेहा प्रसिद्ध व्यापारिक केंद्र थे |
• जमीन पर बैल गाड़ी का प्रयोग सामान ले जाने के  लिए किया जाता था |विदेशी सामान के लिए नावों और समुद्री जहाजों का प्रयोग किया जाता था |
• चाँदी का इस्तेमाल बढ़ गया था और उससे आभूषण बनाए जाते थे |

II. उत्तरकालीन वैदिक युग में सामाजिक जीवन

• समाज 4 वर्णों  में विभाजित था : ब्राह्मण, राजन्य या क्षत्रिय, वैश्य और शूद्र |
• प्रत्येक वर्ण का अपना कार्य निर्धारित था जिसे वे पूरे रीति रिवाज के साथ करते थे | हर एक को जन्म से ही वर्ण दे दिया जाता था |
• गुरुओं के 16 वर्गों मे से एक ब्राह्मण होते थे परंतु बाद में दूसरे संत दलों से भी श्रेष्ठ हो जाते थे | इन्हे सभी वर्गों में सबसे शुद्ध माना जाता था और ये लोग अपने तथा दूसरों के लिए बलिदान जैसी क्रियाएँ  करते थे |
• क्षत्रिय शासकों और राजाओं के वर्ग में आते थे और उनका कार्य लोगों की रक्षा करना और साथ ही साथ समाज में कानून व्यवस्था बनाए रखना होता था |
• वैश्य लोग आम लोग होते थे जो व्यापार, खेतीबाड़ी और पशु पालना इत्यादि का कार्य करते थे | मुख्यतः यही लोग कर अदा करते थे |
• यद्यपि सभी तीनों वर्णों को उच्च स्थान मिला था और ये सभी पवित्र धागे को धारण कर सकते थे, पर शूद्रों को ये सभी सुविधाएं उपलब्ध नहीं थीं और इनसे भेदभाव किया जाता था |
• पैतृक धन पित्रसत्तात्मक का नियम था जैसे चल अचल संपत्ति पिता से बेटे को चली जाती थी | औरतों को ज़्यादातर निचला स्थान दिया जाता था | लोगों ने गोत्र असवारन विवाह का चलन चलाया |एक ही गोत्र के या एक ही पूर्वजों के लोग आपस में विवाह नहीं कर सकते थे |
वैदिक लेखों के अनुसार जीवन के चार चरण या आश्रम थे :ब्रह्मचारी या विद्यार्थी, गृहस्थ, वनप्रस्थ या आधी निवृत्ति और सन्यास या पूर्ण निवृत्ति |

III. प्रशासन की व्यवस्था
• पूर्व वैदिक आर्यन जाति में संगठित रहते थे ना की राज्यों के रूप में | जाति के मुखिया को राजन कहते थे | राजन की अपनी स्वायत्तता उसकी जाति की सभा में प्रतिबंधित थी जिसे सभा या समिति कहा जाता था |
• राजन उनकी सहमति के बिना सिंहासन पर नहीं बैठ सकता था | सभा, जाति के कुछ प्रमुख लोगों की होती थी जबकि समिति में जाति का हर एक आदमी होता था |
• कुछ जातियों के वंशानुगत  मुखिया नहीं होते थे और इन्हे जातिय सभा की सरकार द्वारा चलाया जाता था | राजन की  प्राथमिक अदालत होती थी जिसमे उसकी जाति के सांसद और जाति के मुख्य लोग (ग्रामणि ) शामिल होते थे |
• राजन का मुख्य कार्य अपनी जाति की रक्षा करना था | उसकी सहायता उसके कई अधिकारियों द्वारा की जाति थी जिसमे पुरोहित, सेनानी(सेना का प्रमुख), दूत और जासूस शामिल थे |पुरोहित समारोह करते थे तथा युद्ध में जीत के लिए और शांति बनाए रखने के लिए मंत्रौच्चारण करते थे |
• राजन को समाज और जाति के संरक्षक के रूप में देखा जाता था| वंशानुगत शासन उभरना शुरू हुआ और जिसके फलस्वरूप प्रतिस्पर्धा शुरू हो गई जैसे रथ दौड़, पशु की छाप और पासों का खेल जो की पहले निश्चय करते थे कि कौन राजा बनने योग्य है, बिलकुल भी महत्वपूर्ण नहीं  थे |इस युग के  रीति-रिवाज राजा के दर्जे को लोगों से ऊपर रखते थे | उसे प्रायः सम्राट कहा जाता था |
• राजन की बड़ी हुई राजनीतिक ताकतों ने  उसे उत्पादिक संसाधनों पर नियंत्रण करने की ताकत दे दी थी | ऐच्छिक रूप से दिया गया उपहार अनिवार्य भेंट बना दिया गया हालांकि कर के लिए कोई व्यवस्थित प्रणाली नहीं थी  |
• उत्तरकालीन वैदिक युग के अंत में, विभिन्न प्रकार की राजनीतिक ताकतों जैसे राज्य, गण राज्य और जातिय रियासतों का भारत में उत्थान हुआ |

IV. उत्तरकालीन वैदिक ईश्वर 

• सबसे महत्वपूर्ण वैदिक ईश्वर, इंद्र और अग्नि ने अपनी महत्वता  खो दी और इनके स्थान पर प्रजापति, विधाता की पूजा होने लगी  |
• कुछ सूक्ष्म  भगवान जैसे रुद्र, पशुओं के देवता और विष्णु, मनुष्य का पालक और रक्षक प्रसिद्ध हो गए |

V. रीति-रिवाज और दर्शन शास्त्र

• बलिदान, प्रार्थनाओं से ज्यादा महत्वपूर्ण हो गए और वे दोनों प्रजा और स्वदेशी को अपनाते थे  | जबकि लोग परिवार के बीच में ही बलिदान करते थे, जन बलिदान में राजा और उसकी प्रजा शामिल होते थे |
• यज्ञ या हवन करना उनके मुख्य धार्मिक कार्य होते थे | रोज़ाना के यज्ञ साधारण होते थे और परिवारों के बीच में ही होते थे |
• रोज़ के यज्ञों के अलावा वे त्योहार के दिनों में ख़ास यज्ञ करते थे | कभी कभार इन मौकों पर जानवरों का भी बलिदान दिया जाता था |



उत्तर वैदिक काल (1000 - 600 ई.पू.)

उत्तर वैदिक काल के दौरान (1000-600 ईसा पूर्व) आर्यों का यमुना, गंगा और सदनीरा जैसे सिंचिंत उपजाऊ मैदानों पर पूर्ण नियंत्रण था।

घटनाक्रम

·         1500 ईसा पूर्व और 600 ईसा पूर्व की अवधि प्रारंभिक वैदिक काल (वैदिक काल) और उत्तर वैदिक काल के रूप में विभाजित थी।

·         वैदिक काल: 1500 ईसा पूर्व- 1000 ईसा पूर्व: इस अवधि के दौरान ही आर्य भारत पर आक्रमण करने वाले थे।

·         उत्तर वैदिक काल: 1000 ईसा पूर्व- 600 ईसा पूर्व

विशेषताएं

उत्तर वैदिक रचनाएं

·         यह अवधि वेद के बाद संकलित वैदिक ग्रंथों पर आधारित थी।

·         वैदिक भजन या मंत्रों के संग्रह को संहिता कहा जाता था।

·         भजन गाये जाने के बाद वेदों को धुनों पर स्थापित किया गया था और इसके बाद इन्हें साम वेद संहिता नामित किया गया था।

·         इस अवधि के दौरान दो और वेदों के संग्रहों, यजुरवेद वेद संहिता और अथर्ववेद संहिता की भी रचना हुई थी।

·         यजुर वेद में भजन अनुष्ठान के साथ होते थे जो समाज के सामाजिक-राजनीतिक संरचना को दर्शाते थे।

·         अथर्ववेद में आकर्षण और मंत्र होते थे जो विपदा से रक्षा करते थे। ये गैर-आर्यों के विश्वासों और प्रथाओं को प्रतिबिंबित करते थे।

·         संहिताओं के बाद ग्रंथों की एक श्रृखंला आयी थी जिसे ब्राह्मण कहा जाता था जिन्होंने अनुष्ठानों के सामाजिक और धार्मिक पहलुओं के बारे में विस्तृत जानकारी दी थी।

II- भूरे रंगीन बर्तन

·         ऊपरी गंगा बेसिन के उत्खनन ने मिट्टी के कटोरों और भूरी मिट्टी से चित्रित बर्तनों की खोज  को सुनिश्चित किया ।

·         ये उत्पाद एक ही क्षेत्र और एक ही अवधि (1000-600 ईसा पूर्व लगभग), उत्तर वैदिक संकलन का हिस्सा थे।

·         इस प्रकार,  इन स्थानों को पेंटेट ग्रे वेयर (पीजीडब्ल्यू) स्थान कहा जाने लगा था।

·         ये स्थान पश्चिमी उत्तर प्रदेश और पंजाब, हरियाणा और राजस्थान के आसपास के क्षेत्रों में पाये जा सकते हैं।

III. लौह चरण संस्कृति

·         1000 ईसा पूर्व के आसपास पाकिस्तान और बलूचिस्तान में मिट्टी के अंदर   बहुत लौह भण्डार पाया गया था।

·         800 ईसा पूर्व के आस-पास उत्तर प्रदेश में लोहे का उपयोग तीर-कमान और बरछी- भाला जैसे हथियार बनाने के लिए किया जाता था।

·         उत्तर वैदिक ग्रंथों में लोहे के लिए 'श्यामा' या 'कृष्णा अयास'  शब्दों का प्रयोग किया जाता था।

·         हालांकि कृषि साधारण होती थी लेकिन यह व्यापक होती थी और उत्तर वैदिक काल में चावल और गेहूं की व्यापकता में वृद्धि हुई थी।

·         धातुओं की विविध कला और शिल्प के प्रस्तुतीकरण में वृद्धि हुई। धातु गलाने वाले(स्मेल्टर), लोहे और तांबे के कारीगर तथा बढ़ई जैसे व्यवसाय अस्तित्व में आये थे।

·         उत्तर वैदिक काल में चार प्रकार के मिट्टी के बर्तन होते थे (काले और लाल-बर्तन, काले-स्खलित बर्तन, चित्रित भूरे बर्तन, और लाल बर्तन)।